कहानी | भेड़िया | स्टोरीबॉक्स विद जमशेद

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कहानी  – भेड़िया
राइटर – जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

न्यूयॉर्क सिटी के उस खूबसूरत फाइव स्टार होटल के रूम में दाखिल होते ही… प्रोफेसर तबस्सुम ने कमरे पर एक नज़र डाली। रूम बहुत खूबसूरत था… पर उन्होंने ज़्यादा ग़ौर नहीं किया और सामान पहुंचाने आए लड़के को कुछ डालर्स  देकर दरवाज़ा बंद कर लिया। लंबी थकान की वजह से वो पास रखे सोफे पर बैठ गयी… और सर उठा कर आंखें बंद कर ली… फिर कुछ सोचकर आंख खोली और फोन पर सोशल मीडिया स्क्रॉल करने लगीं… स्क्रीन पर एक न्यूज़ स्क्रॉल करते हुए रुक गयीं। एक भेड़िये की खूंखार तस्वीर थी… और लिखा था – भेड़िये के हमले से यूपी के बहराइच में तीसरी मौत…  प्रोफ़ेसर तबस्सुम को एक झटका सा लगा जैसे वो किसी गहरी याद में चली गयी हों… और उनके आंसू मोटे चश्मे के फ्रेम के पीछे से लुढ़कने लगे। चंद्रशेखर यूनिवर्सिटी में फिज़िक्स पढ़ाने वाली प्रोफेसर तबस्सुम देश की बड़ी रिसर्चर थीं। कई सरकारी-ग़ैर सरकारी प्रोजेक्ट्स में उनकी राय ली जाती थी। वो किसी ज़माने में पीएमओ में कंसल्टेंट भी रह चुकी थीं। फिज़िक्स पर उनकी लिखी किताबें न सिर्फ देश में बल्कि विदेशी यूनिवर्सिटीज़ के कोर्स में भी शामिल थीं। वो बीते कई सालों से टाइम ट्रैवल पर रिसर्च कर रही थीं और उनका मानना था कि टाइम ट्रैवल मुमकिन है। एक जर्मन मैगज़ीन को दिए इंटरव्यू में उन्होंने एक बार कहा भी था कि आने वाले वक्त में वो ये साबित कर देंगी कि समय में आगे या पीछे जाना बिल्कुल मुमकिन है। (बाकी की कहानी नीचे पढें। या इसी कहानी को अपने फोन पर जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनने के लिए ठीक नीचे दिए गए SPOTIFY या APPLE PODCAST के लिंक पर क्लिक कीजिए)

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ख़ैर, प्रो तबस्सुम अपनी प्रोफेशनल लाइफ में बहुत तरक्कीशुदा थी लेकिन अपनी पर्सनल लाइफ में बहुत अकेली थीं। उनका कोई भाई बहन था नहीं, शादी के बाद पति की डेथ कुछ दस साल पहले हो गयी थी… एक जवान बेटा था मुर्तज़ा, वो भी कुछ तीन साल पहले एक हादसे में दुनिया छोड़ गया था। वकार को प्रो तबस्सुम के घर के पीछे वाले जंगल मे आदमखोर भेड़ियों ने शिकार बना लिया था। वो भी ऐसे कि उसकी लाश तक नहीं मिली थी।

पति और बेटे के जाने के ग़म ने प्रोफेसर तबस्सुम को अंदर से कमज़ोर कर दिया था लेकिन वो दुनिया को दिखाती थीं कि वो बहुत मज़बूत हैं।

अभी कुछ ही वक्त बीता था दरवाज़े पर फिर से दस्तक हुई…  प्रोफेसर तबस्सुम ने घड़ी पर नज़र डाली और उठकर दरवाज़ा खोलने चली गयीं। दरवाज़ा खोला.. तो एक अजनबी लड़की सामने खड़ी थी।

हैलो…. मैं अंदर आ सकती हूं क्या? इट्स अर्जेंट… प्लीज़

काले रंग की अजीब सी बैगी पैंट और झबले जैसी ढीली कमीज़ पहने एक लड़की थी। उसकी आंखें बड़ी-बड़ी और नीली थीं, बाल खुले हुए… प्रोफेसर तबस्सुम ने उसके चेहरे पर हड़बड़ाहट और डर देखा… फिर कहा… तो तुम यहां भी आ ही गयी। आओ अंदर आओ

वो अंदर आई और सोफे के सामने वाली चेयर पर बैठ गयी। प्रोफेसर साहब सोफे पर बैठ गयी और कहा, पिछले दो-ढाई हफ्ते से मैं नोटिस कर रही हूं कि मैं जहां भी जा रही हूं… तुम मेरा पीछा कर रही थी… दिल्ली में उस दिन ADG साहब के बेटे के रिस्पेशन मे भी मैंने देखा था तुम एक्ज़िट गेट के पास खड़ी थीं, फिर वो पैसिफिक मॉल की पार्किंग में… एक रात मैंने तुम्हें अपने घर के नीचे भी देखा था… और अब यहां न्यूयॉर्क में… कौन हो तुम… क्या चाहती हो?  

– मैम… मैम… आप घबराइये मत … बस.. बस आप की फैन हूं… बहुत दूर से आयी हूं।”

– बहुत दूर… किसी दूसरे देश से आई हो…

– नहीं मैम… मैं… वो लड़की उनके करीब आई और बोली… “मैं 300 साल बाद की दुनिया से आई हूं। आई एम आ टाइम ट्रैवलर।”

अचानक प्रोफेसर साहिबा के चेहरे के भाव बदले और वो ज़ोर से हसीं

“ओह आई सी (मुस्कुराते हुए) “तो तुम टाइम ट्रैवेलर हो.. ।” उस नीली आंखों वाली लड़की ने हां में सर हिलाया। प्रोफेसर साहिबा बोलीं… “ज़रूर तुम्हें मेरे क्लास के कुछ शरारती बच्चों ने भेजा होगा… टीचर की फिरकी लेते हुए शर्म नहीं आती तुम लोगों को…

– “मैम प्लीज़… आप गलत समझ रही है… मुझे किसी ने नहीं भेजा। मैं खुद आयी हूं… आप से मिलना मेरे लिए ज़रूरी है। आई नो… आपके लिए ये यकीन कर पाना मुश्किल होगा… सबके लिए होता है… लेकिन ये ही हकीक़त है।”

– “ओह, आई सी” प्रोफेसर तबस्सुम ने मज़े लेते हुए कहा चलो तो फिर मान लेते हैं। लेकिन आना कैसे हुआ। आ.. लेट मी गेस। यूं ही किसी सुबह मन किया होगा कि चलो भई तीन सौ साल पीछे घूम के आते हैं… हैना। तो तुम उठी… मसकारा लगाया… कुछ अजीब से कपड़े पहने और टाइम मशीन में बैठकर चली आई घूमने। है ना …”

उस लड़की ने गहरी सांस ली… फिर कहा, मैम जिस वक्त से मैं आई हूं। वहां टाइम मशीन कोई खास चीज़ नहीं है। हां थोड़ी मंहगी ज़रूर होती है लेकिन मोस्टली, हर मीडिया हाउस के पास है। फिर उसने हाथ बढ़ाते हुए कहा मेरा नाम नैना है, मैं जर्नलिस्ट हूं।

– “ओह तो आप जर्नलिस्ट हैं…” प्रोफेसर साहिबा को अब इस बातचीत में मज़ा आने लगा था। उठीं और किनारे रखे जग से ग्लास में पानी निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोलीं,  “तो मिस नैना .. आप सन दो हज़ार तीन सौ चौबीस की जर्नलिस्ट हैं। मिल कर अच्छा लगा.. दा जर्नलिस्ट फ्रॉम दा फ़्यूचर।” फिर हंसी दंबाते हुए बोले “तो कहिए कैसे आना हुआ पुराने ज़माने में?”

नैना ने पूरी संजीदगी से कहा, “मैम दो हज़ार तीन सौ चौबीस में मीडिया ग्रप्स ही इस पूरी दुनिया को चलाते हैं… सब कुछ उनके ही हाथ में है… डेमोक्रेसी इज़ जस्ट आ शो पीस… देश में कौन राज करेगा और कौन विपक्ष में होगा… दोनों बातें मीडिया हाउस ही तय कर लेते हैं… सरकारें उनके आगे झुकी हैं। कंपीटिशन सिर्फ मीडिया हाउसेज़ के बीच चल रही है… हर मीडिया हाउस खुद को पहले से तेज़ और आगे बताता है। पर अब कुछ मीडिया हाउसेज़ ने अपना वर्चस्व साबित करने के लिए एक नया तरीका अपनाया है… और वो है टाइम मशीन। आपको ये बात सुनने में अजीब लग रहा होगा पर यकीन मानिये… 300 साल बाद की हमारी दुनिया में टाइम मशीन वैसे ही है जैसे Out door broadcasting Van.. या बल्क डेटा ट्रांसफर के लिए वी-सैटे मशीन जो आपके यहां ATM’s के ऊपर लगी होती है… हर कोई अफोर्ड नहीं कर सकता… लेकिन कंपनियां करती ही हैं। वैसे ही चैनल्स ने टाइम मशीन खरीद ली है और अब वो उस टाइम मशीन से बीत चुके ज़माने के लोगों का इंटरव्यू लेते हैं…

कमाल है भई वाह… प्रोफेसर तबस्सुम ने पैर मोड़ कर सोफे पर टेक लगाते हुए कहा, जैसे अब वो ये कहानी का मज़ा लेना चाहती हैं… बताओ बताओ आगे बताओ… उन्होंने कहा तो अपना नाम नैना बताने वाली लड़की ने कहा,

अब तो टेक्नॉलोजी बहुत महंगी भी नहीं रही… अगर ठीक-ठाक मीडिया हाउस है तो उनके यहां ये मशीन होती ही है. जैसे इंटरटेनमेंट, पॉलिटिक्स, टेक्नॉलिजी, हेल्थ ये सब जर्नलिज़्म की बीट्स होती हैं… वैसी ही टाइम ट्रैवल भी एक बीट है… बाकायदा टाइम ट्रैवल जर्नलिज़्म के कोर्स ऑफर होते हैं मीडिया यूनिर्सिटीज़ में….

  • हम्म… अच्छा… तो चाहती क्या हो…. प्रोफेसर तबस्सुम ने उसकी बात काटते हुए पूछा… उसने कहा, आपका इंटरव्यू लेना चाहती हूं…

तो वो तो तुम ऐसे ही ले सकती हो… उसके लिए इतनी तिकड़मबाज़ी की क्या ज़रूरत

– ज़रूरत है, क्योंकि मेरे कुछ ऐसे सवाल हैं… जिनके जवाब देने में आप कंफर्टेबवल नहीं होंगी। उन सवालों का जवाब देना आपके लिए मुश्किल होगा… जब मैं आपसे वो सवाल पूछूंगी तो आप चौंक जाएंगी… क्योंकि अभी आप को ऐसा लगता है कि वो आपके राज़ हैं… लेकिन प्रोफेसर… 300 सालों के बाद की दुनिया ने आपका सच जान लिया है…

  • क्या बक रही हो… कौन सा राज़…. इस बार प्रोफेसर तबस्सुम थोड़ा नाराज़ हुईं... और ये टाइम ट्रैवल की बकवास बंद करो… हां ये ठीक है कि मैं खुद टाइम ट्रैवल पर रिसर्च कर रही हूं… और मानती हूं कि पॉस्बिल है लेकिन अभी रिसर्च अधूरी है
  • येस मैम अधूरी है और आप उसे पूरा भी नहीं कर पाएंगी… देखिए मैं तीन सौ साल बाद की दुनिया से आई हूं… जो किताबें वो किताबें जो हमने पढ़ी हैं उसमें यही लिखा है कि टाइम ट्रैवल की शुरुआती थ्योरी आप की ही बनाई हुई है… लेकिन वो अधूरी है…. पर उसी अधूरी थेरी की बुनियाद पर साइंटिस्ट्स ने एक्सपैरिमेंट करके वो टाइम मशीन बनाई… जिसका इस्तेमाल हम लोग हमारे वक्त में करते हैं… और इसलिए हमारी दुनिया में आपको ही मदर ऑफ टाइम मशीन कहा जाता है

प्रोफेसर तबस्सुम के चेहरे की मुस्कुराहट आहिस्ता-आहिस्ता रोमांच में बदलती जा रही थी। लेकिन वो जानबूझकर नकली हंसी होठों पर चढ़ाए हुए थे। प्रोफेसर साहब अब उसकी कहानी से ऊबने लगी थीं। उन्हें लग रहा था कि ये लड़की कोई बहरूपिया है, जो कुछ भी कर सकती है। नैना बोलती रही, प्रोफेसर साबिहा उठीं और कॉफी बनाने के बहाने केटल उठाते वक्त… टेबल पर फोन पर लगा सिक्योरिटी का एक बटन चुपके से दबा दिया और फिर कॉफी बनाते हुए पूछने लगीं… नैना… पूरा नाम क्या है तुम्हारा?
– बस नैना ही नाम है…
– क्यों… कोई सर नेम नहीं है… कुछ तो होगा… शर्मा, वर्मा, बाजपेयी, सोनकर… कुछ तो होगा
– 
नहीं अब समझी वो क्या पूछ रही हैं… मुस्कुराकर अपनी कलाई में बंधी एक अजीब सी घड़ी उतारकर मेज़ पर रखते हुए बोली, नहीं मैम, हमारे वक्त तक… कास्ट सिस्टम खत्म हो गया है… इनफैक्ट रिलीजन भी…
– बकवास…. ये तो मुमकिन ही नहीं है… शायद मैं तुम्हारी बात मान भी लेती लेकिन इस बात के बाद तो पक्का पता हो गया कि तुम झूठी हो… मज़हब इस दुनिया की वो धुरी है जिस पर पूरी कायनात टिकी है, सब कुछ खत्म हो सकता है लेकिन मज़हब खत्म नहीं हो सकता…
– हो गया है मैम, 300 सालों में धर्म खत्म हो गया… अब कोई हिंदू, न हिंदू है, न मुसलमान, न यहूदी, न ईसाई… सिर्फ दो मज़हब हैं – ग़रीब और अमीर… 300 सालों में सारे रिलिजन खत्म हो गए हैं… 
कहते हुए अपनी कलाई में बंधी घड़ी उतारी और मेज़ पर रख दी। वो घड़ी कुछ अजीब सी थी, जिसमें कई बटन और लाइट थी। उसने आगे कहा, ये एक टाइम मशीन टूल है, इसमें आप जो भी कहेंगी… वो हमारी दुनिया में लगे ऑडियो ट्रांसमीटर में रिकॉर्ड होगी। जिसे हम पूरी दुनिया को सुनाएंगे।

धर्म कभी खत्म नहीं हो सकता… ख़ैर… ये बताइये कि किस-किस का इंटरव्यू कर चुकी हैं आप नैना.. प्रोफेसर तबस्सुम ने पूछा तो वो बोली, मैम सच बताऊं तो ये मेरा पहला इंटरव्यू है, मैंने किसी का नहीं किया… इसीलिए मैं नर्वस हूं.. लेकिन दूसरे चैनलों के जर्नलिस्ट्स मुगल बादशाह अकबर, मिर्ज़ा गालिब, राणा सांगा, महात्मा गांधी… आइंस्टाईन वगैरह का इंटरव्यू कर चुके हैं… हां इस बीट में सबसे बड़ा चैलेंज यही है कि जब उस दौर मैं पहुंचते हैं तो लोगों को कंविंस करना मुश्किल होता है कि हम फ्यूचर से आएं हैं… इसीलिए हमारे कुछ फैलो जर्नलिस्ट को नाकामयाबी भी झेलनी पड़ी.. जैसे चार्ली चैपलिन ने इसे मज़ाक कहा और इंटरव्यू नहीं दिया, ऐसा ही उर्दू शायर मीर तकी मीर के साथ भी हुआ था।

प्रोफेसर तबस्सुम अब उसे स्थिर होकर देख रही थीं। उसने आगे कहा, ये मेरा पहला इंटरव्यू है, जब मुझे स्टोरी आइडिया अपने एडिटर को देना था तो मैंने सोचा कि क्यों ना उसी के साथ इंटरव्यू करूं जिसने सबसे पहले इसकी कल्पना की थी… यानि कि आप मैंने वर्चुअल लाइब्रेरीज़ में जब इस बारे में रिसर्च की तो आप का नाम पता चला। मैंने आपकी चारों किताबें पढ़ीं। An introduction to Quantum Physics, The principal of timeThe theory of Time relativity और Time Traveling is possible और तभी मैंने…”

– “एक मिनट..” प्रोफेसर साहब चौंक गयीं। “चौथी किताब?” अब उनके चेहरे पर हैरानी थी… ये नाम TIME TRAVELLING IS POSSIBLE नाम तो मैंने सिर्फ सोचा था कि अगली किताब का यही नाम रखूंगी…और किताब तो अभी मैंने पूरी भी नहीं की… ये नाम तुम्हें कैसे पता चला…

नैना मुस्कुराई, मैम… ये किताब मैं पढ़ चुकी हूं… अब प्रोफेसर तबस्सुम के चेहरे पर कुछ हैरानी थी।

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई. और दरवाज़ा खटाक से खुल गया। सिक्योरिटी ऑफिसर्स ने इमरजेंसी की से दरवाज़ा खोल लिया था। दो बंदूक धारी अंग्रेज़ सिक्योरिटी गार्ड्स दरवाज़े पर थे।

मैम इज़ एवरीथिंग ओके…
नैना घबरा गयी उसने जल्दी से अपनी घड़ी उठाई.. जैसे वही उसके लिए सबसे कीमती चीज़ थी।

प्रोफसर तबस्सुम ने कहा, आ… वेट आ मिनट… डोंट वरी … एवरीथिंग इज़ ओके…. इट वॉज़ आ फॉल्स अलार्म….

नैना के चेहरे पर राहत आ गयी। सिक्योरिटी गार्ड्स चले गए…नैना ने कहा “थैंक्यू मैम।”.

 “तुम्हें चौथी किताब उसके नाम के बारे में कैसे पता चला?”

– मैम मैं बता तो रही हूं…. मैं फ्यूचर से आई हूं। इसलिए….

– “बकवास कर रही हो तुम… मैंने तुम्हें बचा लिया इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुमपर भरोसा कर रही हूं… मैंने कॉलेज सेशम में या कहीं और नाम लिया होगा कभी… पर हां… तुम सच बोल रही हो या झूठ… पता नहीं… लेकिन जो बोल रही हो… है इंट्रेस्टिंग।” उन्होंने मुस्कुराकर कहा।

– “तो बताओ… उस तीन सौ साल बाद वाली लाइब्रेरी में और क्या-क्या लिखा था मेरे बारे में…” प्रोफेसर तबस्सुम ने नैना से पूछा तो वो पानी पीते हुए आराम से पीछे खिसकते हुए बोली “मैम.. अब आपके बारे में क्या बताऊं… यहां आने से पहले मैंने आप पर जब रिसर्च की तो मैं तो हैरान थी… डबल पीएचडी इन क्वानटम फिज़िक्स, एम ए इन मॉडर्न साइंस, दर्जनों इंटरनैशनल फैलिसिटेशन्स और Alliance of World Scientists में टॉप.. आई मीन इट्स जस्ट…”

– “वॉट… एक मिनट.. एक मिनट…” प्रोफेसर साहब आगे खिसक आई… Alliance of World Scientists मैं मैंने टॉप किया? कब….

आ… एक मिनट, नैना ने अपने कानों में लगे एक ईयर बड जैसी चीज़ को दबाया और कहा… विच ईयर डिड प्रोफेसर तबस्सुम वॉन बेस्ट साइंटिस्ट अवार्ड इन AWS… फिर कुछ सुनने के बाद, पूछने वाले टोन में बोली… 2024?

नैना ने प्रोफेसर साहिबा की तरफ देखा… अब उनके हाथ कांप रहे थे… उनका मुंह खुला का खुला था। AWS … ये वही है… जिसके लिए मैं न्यूयॉर्क आई हूं… कहते हुए उनकी आंखों की चमक बढ़ गयी। दरअसल Alliance of World Scientists हर पांच साल में होने वाला एक कंपिटिशन है, जो साइंस की दुनिया का सबसे बड़ा अवार्ड है। हर पांच साल में दुनिय भर के पांच साइंटिस्ट शार्ट लिस्ट किये जाते हैं और कोई एक वर्ल्ड साइंटिस्ट घोषित किया जाता है। नैना के हिसाब से ये अवार्ड प्रोफेसर साहिबा को मिल गया था… इसका मतलब ये था कि आज रात को अवार्ड सेरेमनी में ये अवार्ड उनको मिलने वाला था।
प्रोफेसर साहिबा के चेहरे पर पसीने की बूंदे थीं। उनके होंठ कांप रहे थे… अब उन्हें उस पर यकीन होने लगा था।

– “इधर आओ… इस तरफ… ” पहली बार उन्होंने उससे संजीदा होकर कहा इधऱ बैठो… नैना ने अपनी वो लाइट वाली घड़ी वापस मेज़ पर रखी और चेयर उनकी तरफ खिसका ली।

– “और कौन कौन सी बातें हैं जो तुम जानती हो…. सच सच बताना…

– मैम, मुझे नहीं… आपकी बायोग्राफी में सब कुछ लिखा हुआ है… ये भी कि… कि…

– कि क्या…

– कि आपके बंग्ले के पीछे वाले जंगल से भेड़िया आपके बेटे मुर्तज़ा को उठा ले गया था… औऱ आप उसके हादसे के बाद कुछ महीनों के लिए घर में बंद हो गयी थी। उसकी कुछ और डीटेल्स भी हैं जो बताती हैं कि मुर्तज़ा की मौत असल में हादसा नहीं, कत्ल था…

वॉट रबिश… पूरी दुनिया जानती है कि मुर्तज़ा पर भेड़ियों ने हमला किया था प्रोफ़ेसर साहिबा कहते हुए उठ खड़ी हुई। वो नार्मल दिखने की कोशिश कर रही थीं लेकिन उनके मन में उथल-पुथल थी। अब तो दिल और दिमाग़ दोनों कह रहे थे कि नैना की बातें सच हैं… लेकिन यूं किसी यकीन करें भी तो कैसे।

  • देखो नैना… तुम जो भी हो… मुझे नहीं पता कि मै कैसे तुम्हें …. उनकी बात पूरी भी नहीं हो पाई कि तभी फोन बज गया।

उन्होंने फोन उठाया और बात की… दूसरी तरफ से आती आवाज़ सुनते-सुनते उनके चेहरे पर चमक आने लगी। वो कॉल AWS यानि अलायंस ऑफ वर्ल्ड साइंटिस्ट की मैनेजमेंट टीम से था। उन्हें बताया गया कि इस बार का अवार्ड उन्हें मिला है और इसलिए वो अपनी विज़िट कंफर्म करें… कार उन्हें लेने वक्त से आ जाएगी।

  • येस…. येस आई एम कमिंग… विल भी देयर… थैंक्यू

वो धम्म से सोफे पर बैठ गयी… और नैना को देखने लगीं…. उनके खून में चिंगारियां दौड़ रही थीं। ब्लड प्रेशर कभी हाई लगता, कभी लो। वो टाइम ट्रैवेल का सिद्धांत जिसके बारे में वो खुद दुनिया को यकीन दिलाने के लिए किताबें लिख रही थीं, वही सिद्धांत खुद नैना बनकर उनके सामने बैठी थी। मन अंदर ही अंदर शोर कर रहा था। कि जो उन्हें सनकी कहते थे, अब वो उन्हें चीख–चीख कर बता दें कि देख लो… मैं जो कहती थी सच है।

“नैना… तुम… तुम्हारे बारे में मैं अगर आई मीन किसी को… बता दूं…. तो।” प्रोफेसर तबस्सुम लड़खड़ाते हुए बोल रही थी, “बस तुम्हें फोन पर बात करनी होगी.. देखो… इससे ये होगा कि सबको यकीन हो जाएगा कि मेरी थ्योरीज़ सही है… प्लीज़ तुम”

– “कोई फायदा नहीं है मैम नैना ने कहा मेरा यकीन कीजिए इससे कोई फायदा नहीं है। मैं अपने सीनियर जर्नलिस्ट्स के तजुर्बें के आधार पर कह रही हूं। कोई नहीं मानेगा। उल्टा आपको लोग बेवकूफ समझेंगे और मुझे फ्रॉड।”

नैना ने उन्हें समझाया कि वो उन्हें मौजूदा वक्त में कोई फायदा नहीं पहुंचा सकती। क्योंकि उसके लिए ये वक्त गुज़रा हुआ वक्त है जिसका एक भी हर्फ़ बदला नहीं जा सकता। इतिहास वक्त के पन्नों पर एक बार दर्ज हो जाए तो उसे न टाइम ट्रैवलर बदल सकता है, ना खुद वक्त।

– “मैं… मैं तुम्हें इंटरव्यू दूंगी लेकिन तुम मेरे लिए कर क्या सकती हो” प्रोफ़ेसर साहिबा ने झुंझला कर कहा, नैना बोली… “देखिए, आज यानि दो हज़ार चोबीस सौ तो मेरे लिए इतिहास है, लेकिन दो हज़ार तीन सौ उन्नीस मेरा वर्तमान है। वहां मैं आपकी मदद कर सकता हूं। वो सारी शोहरत, सारा नाम… जिसके आप हकदार हैं, मैं आपको ज़रूर दिलाऊंगा। सोचिए क्या ये कम है कि तीन सौ साल बाद पूरी दुनिया आपको वैसे याद करेगी जैसे आज आर्कमीडीज़ या न्यूटन को याद किया जाता है… ये कोई छोटी बात तो नहीं”

प्रोफेसर साहिबा ने गहरी सांस ली… और फिर सामने रखे गिलास का कवर हटाते हुए पानी का एक घूंट लिया और फिर कहा… तो मुझे करना क्या होगा

नैना उनकी तरफ बढ़ी और आहिस्ता से कहा बस मेरे सवालों का जवाब देना होगा.. सही और सच्चे जवाब… अपनी रिसर्च के बारे में भी और …

और? और क्या
और मुर्तज़ा के कत्ल के बारे में भी…..

 

To be continued… 

 

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