कहानी | भेड़िया 2 | स्टोरीबॉक्स विद जमशेद

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कहानी – भेड़िया 2 
राइटर – जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

अब तक इस कहानी में आपने सुना कि प्रोफेसर तबस्सुम जो कि देश की एक बहुत बड़ी साइंस जर्नलिस्ट हैं, वो टाइम ट्रैवल पर रिसर्च भी कर रही हैं। प्रोफेसर सहिबा, न्यूयार्क आती हैं एक अवार्ड फक्शन में… होटल के रूम में पहुंचते ही उनके कमरे में एक लड़की आती है जो अपना नाम नैना बताती है और कहती है कि वो तीन सौ साल बाद की दुनिया से आई है। वो कहती है कि वो जर्नलिस्ट है और तीन सौ साल बाद की दुनिया में टाइम ट्रैवल एक आम बात है और वहां बहुत सारे जर्नलिस्ट पुराने वक्त की बड़ी हस्तियों का इंटरव्यू करते हैं। प्रोफेसर साहिबा का एक बेटा था मुर्तज़ा जिसकी मौत भेड़ियों के हमले में हो गयी थी। नैना कहती है कि तीन सौ साल बाद की दुनिया में लोगों को ये पता चल चुका है कि आपके बेटे की मौत हादसा नहीं, एक कत्ल था। नैना कहती है कि वो एक टाइम ट्रैवेलर है उसे प्रोफेसर की उस किताब का नाम भी मालूम है जो अभी अधूरी है, वो जिस साइंस कंपिटिशन में न्यूयार्क आई हैं… नैना बता देती है कि जीत उन्हीं की होगी… और तभी फोन भी आ जाता है कि प्रोफेसर तबस्सुम ही जीती हैं… अब प्रोफेसर को यकीन हो जात है कि नैना एक टाइम ट्रैवेलर है। नैना उन्हें बताती है कि वो उन्हें तीन सौ साल बाद की दुनिया में वो शोहरत दिला देगी जो वो चाहती हैं, बस उन्हें उसकी छोटी सी घड़ी में बोलना होगा… ये आवाज़ तीन सौ साल बाद की दुनिया में अभी सुनी जा सकेगी। उन्हें न्यूटन और आर्कमीडीज़ की तरह याद किया जाएगा… प्रोफेसर इंटरव्यू के लिए तैयार हो जाती हैं… लेकिन नैना उनसे कहती है कि आपको सब कुछ सच सच बताना होगा… मुर्तज़ा की मौत के बारे में भी… अब आगे

नैना ने मेज़ पर रखी उस घड़ी जैसी मशीन को उठाया और कहा, देखिए प्रोफसर तबस्सुम इससे पहले कि मैं अपने इस टाइम ट्रांसमीटर पर लगे इस पिंक बटन को दबाऊं… एक बात आपको साफ साफ बताना चाहती हूं… देखिए आप तीन सौ साल बाद की दुनिया में एक ठीक-ठाक जाना मानी हस्ती हैं, जिन्हें स्कूलों में पढ़ा जाता है, साइंस वर्ल्ड में आपको आइडल मानते हैं… आपकी ही लिखी अधूरी किताब की वजह से टाइम ट्रैवल हो पाया… आपके बारे में बहुत सारी किताबें हमारे वक्त के साइंस राइटर्स ने लिखी हैं…

– तुम कहना क्या चाह रही हो… प्रोफेसर तबस्सुम ने उसको टोकते हुए कहा तो वो बोली… बस यही कि… कि झूठ मत बोलियेगा… आपकी आवाज़ इस टाइम ट्रांसमीटर के ज़रिए हमारे समय में मौजूद लोग सुनेंगे, रिकॉर्ड करेंगे… अगर आप ने कुछ भी झूठ बोला… तो काफी इंबैरिसिंग होगा… क्योंकि सच तो सबको पता है… (बाकी की कहानी पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें। या इसी कहानी को अपने फोन पर जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनने के लिए SPOTIFY या APPLE PODCAST के लिंक को क्लिक करें)

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(बाकी की कहानी यहां से पढ़ें) प्रोफेसर तबस्सुम के चेहरे पर हल्का सा डर आया… फिर उन्होंने हां में सर हिलाया। “तो शुरु करते हैं..” कहते हुए उन्होंने घड़ी जैसे उस टाइम ट्रांसमीटर को बीच में रखी मेज़ पर रखा… बटन दबाया…और गहरी सांस लेकर कहा…

हैलो एंड वेलकम टू टाइम ट्रैवल जर्नलिज़्म स्पेशल सीरीज़… वंस ऑपन आ टाइम इन फ्यूचर… … हम आज लौटे हैं अपने समय से तीन सौ पीछे और पहुंचे हैं 2024 में… जहां हमसे बात करने को तैयार हुई हैं… वो जिन्हें आप अपनी स्कूल की किताबों में पढ़ते हैं, ग्रेट साइंटिस्ट ऑफ आल टाइम, मदर ऑफ टाइम ट्रैवल प्रोफेसर तबस्सुम हयात… वेलकम मैम….

प्रोफेसर तबस्सुम ने हां में सर हिलाया। वो इससे पहले हज़ारों इंटरव्यू दे चुकी थीं पर आज उन्हें घबराहट हो रही थीं। उसी घड़ी जैसी मशीन में लगातार लाल और हरी बत्ती जल रही थी। नैना ने यहां वहां की बातें की और फिर कहा, बताइये कुछ अपने बचपन के बारे में  प्रोफेसर साहिबा ने ग्लास से पानी गटकते हुए कहा “वेल मेरा बचपन हैदराबाद में गुज़रा। मेरे पापा अग्रीकल्चरल साइंटिस्ट थे… उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया प्रेसीडेंट अब्दुल कलाम सर ने… मैंने शुरुआती पढ़ाई के बाद हार्वर्ड में एडमिशन लिया… लेकिन टाइम को लेकर मेरे मन में बचपन से काफी सवाल थे…”

नैना ने उनकी बात काटते हुए कहा “पर ये आपको कब लगा कि वक्त मे पीछे या आगे जाया जा सकता है…” प्रोफेसर साहिबा मुस्कुराईं और बोली….  देखिए मैं जब बहुत छोटी थी तो और घर में लगी मम्मी की तस्वीर देखती थी, तो अक्सर सोचती थी कि काश मैं उनसे कभी मिल सकती… हालांकि उनकी डेथ तभी हो गी थी जब मैं तीन साल की थी… जब मैं स्कूल में अपने दोस्तों को उनकी मम्मी के साथ देखती थी तो अपनी मम्मी को बहुत मिस करती थी। सोचती थी कि काश कभी ऐसा हो कि मैं वक्त में पीछे जाकर उनसे मिल सकूं… उन्हें गले लगा सकूं…
थोड़े बड़े होने पर जब मैंने आइंस्टाइन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी पढ़ी तो मैं बहुत इंप्रैस्ड हुई। ये दुनिया की हर डायनमिक चीज़ पर लागू होती है। एक दिन पापा के साथ उनकी कार से कॉलेज जाते वक्त मैं सोचने लगी कार की स्पीड और बाहर की दुनिया की स्पीड में फर्क है। दोनों के मास मूवमेंट अलग-अलग हैं। पर अगर कार लाइट की स्पीड यानि उनतीस करोड़, सत्ताननबे लाख, बाननबे हज़ार, चार सौ अट्ठावन मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चले। तो हम टाइम के एक पैरलल यूनिवर्स में जा सकते हैं।” नैना उन्हें हैरानी से सुन रही थी…. वो बोलती जा रही थीं… देखिए “दुनिया में जो कुछ भी हुआ है या हो रहा है.. वो सब घटनाओं की एक सीरीज़ है। हम उस पैरलल यूनिवर्स के ज़रिये भविष्य में जा सकते हैं, उसे बदल भी सकते हैं … और हां.. इसका ज़िक्र रीलीजियस बुक्स में भी है”

– “अच्छा?”

जी… एक धार्मिक ग्रंथों में एक जगह ये आया है कि रेवत नाम के एक राजा थे। वो अपनी बेटी रेवती की शादी के लिए एक लड़का ढूंढे गए ब्रह्मा के पास ब्रह्मलोक गए। लेकिन जब वह धरती पर लौटे तो यहां चार युग बीत चुके थे। यहीं से मुझे लगा कि ये मुमकिन है… मैंने रिसर्च की… किताब लिखी… और दखिए आज आप बता रही हैं कि ये हो गया है…

नैना की आंखों में चमक थी… वो एक के बाद एक सवाल पूछती गयी… उनकी पर्सनल ज़िंदगी के बारे में… उनके पति और बेटे के बारे में… उन्होंने सब बताया…

हां मेरे शौहर बीमार थे… उन्हें हैपाटाइटिस हुआ था… हो सकता है आपके वक्त तक ये बीमारी खत्म हो गयी हो… पर आज यानि 2024 में तो है… और हां… मेरा बेटा.. मुर्तज़ा… उसके साथ एक हादसा हो गया था। जिसमें वो….
– कैसा हादसा… नैना ने उनकी बात काटी
– आ… वो… भेड़ियों ने उस पर हमला कर दिया था। मेरा घर के पीछे काफी बड़ा जंगल है… वो अक्सर आ जाते थे… हमने इंतज़ाम किये थे… पर… कहते-कहते उनकी आंखों में आंसू आ गए, जिन्हें वो रुमाल से पोंछने लगी।

 नैना उठी और पीछे अलमारी पर रखा टिशू पेपर का डिब्बा उठाकर मेज़ पर ले आई। और एक टिशू निकाल कर देते हुए बोली… मैं आपका दर्द समझ सकती हूं, मैंने भी कुछ साल पहले किसी अपने को खो दिया।
– किसे
– अपने भाई को…
– सगा भाई था
– जी
– ओह… क्या हुआ था उसे….
– उसने सुसाइड कर ली…
– सुसाइड… ओह आई सी… लेकिन क्यों…
– बस वही…. ज़िंदगी से जो चाहता था वो नहीं मिला उसे…. ख़ैर… मेरा छोड़िये… आप अपना बताइये… मुर्तज़ा के बारे में बता रही थी आप

प्रोफेसर बोलीं, “हम्म… मैं और मुर्तज़ा हर छोटी बड़ी खुशी साथ मनाते थे… और था ही कौन हमारा… जवान बेटे के साथ मैं भी उसकी दोस्त हो जाती थी। मुझे याद है कि एक रोज़ जब मैं एक सेमिनार से लौटी तो मैंने कहा कि इस खुशी में हमें पिज़्ज़ा मंगाना चाहिए… पर न जाने क्यों उसने कहा कि घूमने चलते हैं… खुली हवा में… मैंने कहा चलो… काश मैंने मना किया होता… ख़ैर हम गए… एक पेड़ों सी घिरी जगह पर हमने चादर बिछायी और कुछ खाने का सामान सजाकर, मुर्तज़ा फोन में गाने प्ले कर रहा था। कुछ देर ही बीती थी कि अचानक… सामने की झाड़ियों में कुछ हलचल हुई। मैं घबराई तो उसने कहा, मैं देखता हूं… वो झाड़ियों तक गया… मैं उसे देख रही थी कि तभी मेरा फोन बजा जो बैग में था… मैं बस अपना फोन बैग से निकालने लगी कि तभी मुर्तज़ा की चीख सुनाई दी। मैं कांप गयी। पलटा तो देखा कि मुर्तज़ा वहां नहीं था। लेकिन.. लेकिन मैंने देखा कि कोई जंगली आदमखोर जानवर उसे खींचता हुआ, दूसरी तरफ की झाड़ियों में ले जा रहा था। वो चीख रहा था। मैं उसके पीछे भागी… लेकिन फिर उसकी चीख बंद हो गई। मैंने पूरी कोशिश की.. लेकिन… लेकिन।”

कहते कहते वो खामोश होकर चश्मा उतार कर आंखें पोंछनी लगीं। नैना ने उन्हें गौर से देखा… मेज़ पर रखी मशीन उठाई बटन दबाया और वापस रख दिया।

 “क्या हुआ… अगला सवाल नहीं पूछोगी…”
– नहीं
“क्यों… क्या हुआ”
नैना बोली… “मैं नहीं चाहती कि लोग आप को झूठा कहें… देखिए मैं पहले ही कह चुकी हूं कि सबको पता है कि हुआ क्या था… हम जानते है कि … ”
 

कि क्या…
कि उसका कत्ल हुआ था। 
नैना ने कहा थो प्रोफेसर तबस्सुम का गला सूखा… उन्होंने फिर से पानी पिया।

“बकवास है ये… तुम… तुम कुछ नहीं जानती…” प्रोफेसर साहिबा हड़बड़ाती हुए बोलीं… “मैंने जैसा बताया वैसा ही हुआ था। मुर्तज़ा को … आदमखोर भेड़िया उठा ले गया था। वन विभाग ने बहुत दिन तक तलाश किया लेकिन… लेकिन लाश नहीं मिली। और इसीलिए केस दर्ज नहीं हुआ। बस.. बस यही सच है”

नैना बोली. “मैम, सच मैं जानती हूं। पर क्योंकि ये इंटरव्यू है मुझे सबकुछ आप से सुनना था।” नैना खड़ी हुई “यू नोट वॉट… मझे दुख हो रहा है। मैं आपसे इसलिए मिलने आयी.. ताकि आपको आपकी शोहरत का हक दिला सकूं। आई वॉंटेड टू फाइट फॉर यूं.. लेकिन आप…आप मुझसे ही झूठ बोल रही हैं।”

प्रोफेसर साब उसे ग़ौर से देख रही थी। वेल… अब ये इंटरव्यू यही खत्म करना पड़ेगा।” नैना ने मशीन उठाई और पलटकर दरवाज़े की तरफ जाने लगी। गुड बाए मैम…
रुको… प्रोफेसर तबस्सुम की आवाज़ गूंजी…
उन्होंने नम आंखों से उसे देखते हुए कहा… “मैं.. मैं सच बता दूंगी लेकिन, लेकिन तुम वादा करो कि… ये बातें किसी फ्यूचर रिपोर्ट में डॉक्य़ूमेंट नहीं होंगी।”

नैना ने सर हिलाते हुए इशारा किया और फिर दोनों अपनी-अपनी सीट पर वापस बैठ गए। प्रोफेसर तबस्सुम
“औलाद दुनिया की सबसे अज़ीम नेअमतो में से एक है… जब पहली बार मुर्तज़ा मेरे गोद में आया था… तो उस वक्त मैंने क्या महसूस किया था मैं बता ही नहीं सकती। मैंने उसे अकेले पाल पोस कर बड़ा किया। स्कूल से क़ॉलेज तक हर ख्वाहिश पूरी की। लेकिन…” उन्होंने दोबारा नैना की तरफ देखा, वो इत्मिनान से सुन रही थी। प्रोफेसर तबस्सुम ने हिम्मत करते हुए आगे कहा… “मगर सब बिगड़ गया। तब जब मैं पोलेंड की एक कॉनफ्रैंस में जा रही थी। मुर्तज़ा ने मुझसे कहा कि लौटने पर वो मुझे किसी से मिलवाना चाहता है। मैं समझ गयी कि कोई उसकी दोस्त होगी… जिससे वो प्यार करता होगा… शादी करना चाहता होगा। पोलेंड की पूरी ट्रिप में मैं बहुत एक्साइटेड थीं। सोच रही थी कि वो लड़की कैसी होगी जिसे मुर्तज़ा ने चुना है… मैं उसका तसव्वुर करती थीं। दो महीने बाद मैं इंडिया लौटी… एक दोपहर मुर्तज़ा ने बताया कि शाम को उसे लेकर आ रहा है जिससे मिलवाना चाहता था। मैंने कहा बिल्कुल ज़रूर….

मैंने तरह तरह के खाने बनवाए… इंतज़ार किया… शाम को जब घंटी बजी… मैंने दरवाज़ा खोला… तो सामने मुर्तज़ा था… और उसकी पीछे …. पीछे .. कोई लड़की नहीं… लड़का खड़ा था। मुर्तज़ा मुझे लड़के से मिलवाना चाहता था… उसका नाम सोहित था… सोहित उसका पार्टनर था और वो दोनों …. दोनों शादी करना चाहते थे।

  • यू मीन सोहित वॉज़ आ गे
  • वॉट इवर यू गाइज़ कॉल इट… आई वॉज़ शॉक्ड… रादर अशेम्ड ऑफ माई अपब्रिंगिंग
  • मैम.. देयर इज़ नथिंग टू भी अशेम्ड ऑफ… गे होने इज़ एज़ नैचुरस एज़ यू एंड मी… एंड बाई दा वे… इट हैज़ नथिंड टू डू विद अप्रिंगिग… और फिर आप तो एक साइंटिस्ट हैं… कम से कम आप तो
  • हां हूं साइंटिस्ट… लेकिन साइंटिस्ट भी इसी समाज में रहते हैं… उन्हें भी और लोगों के साथ जीना पड़ता है…. ताने सुनने पड़ते हैं… उनकी तन्ज़ भरी निगाहों को झेलना पड़ता है… औऱ मैं… मैं इसके लिए तैयार नहीं थी… इतने सारे अवार्ड्स… इतनी कामयाबी… इतनी शोहरत मैंने इसलिए नहीं कमाई कि सड़क पर चलते कोई मुझे देख कर हंस सके… कि ये देखो उसी लड़की की मां जा रही है जो…. जो … प्रोफेसर साहिबा के चेहरा कांप रहा था… मुझे बदनामी कुबूल नहीं थी…. और इसके लिए मुझे मुर्तज़ा का कत्ल भी करना पड़े… तो मैं तैयार थी…. और मैंने किया… कत्ल से कुछ घंटो पहले… मैंने मुर्तज़ा के साथ पार्टी की… हम खुले आसमान के नीचे देर रात तक बैठे… वो पूछता रहा कि मेरी आंखों में बार बार आंसू क्यों आ रहे हैं… मैं उसे टालती रही… खुले आसमान के नीचे बार-बार मुझे वो दिन याद आ रहा था जब अस्पताल में नर्स ने पहली बार मुर्तज़ा को मेरी गोद में दिया था… उसकी किलकारी मेरी कानों में गूंज रही थी… और अब मुझे उसी चीखें सुननी थी… पर मैं मजबूर थी… मैंने ड्रिंक्स में बेहोशी की दवा मिलाई थी… मुर्तज़ा मुझे सोहित के बारे में बताता रहा…. कि कब उसे महसूस हुआ कि वो लड़कों में इंट्रेसटेड है… कैसे वो सोहित के करीब आया… कब उन दोनों ने एक साथ होने का फैसला किया… वगैरह वगैरह… और बताते बताते वो बेहोश हो गया… मैंने बेहोशी के दौरान उसका गले पर चीरा लगाया… अपनी औलाद को इस तरह कत्ल करना आसान नहीं था… उसकी खून से सनी वाश को खींचते हुए घर के पीछे वाले जंगल में ले जाना भी आसान नहीं था… पर मैंने किया… उसकी लाश को सुबह साढ़े पांच बजे की कंपकपाती धुंध में घर के पीछे वाले जंगल में खींच कर ले गयी… खींचते वक्त उसका खून ज़मीन पर लकीर बना रहा था… पीछे कुछ दूर पर एक पुरानी मज़ार है… उसी के बगल में उसे दफना दिया… और पुलिस को कहा कि जब वो सुबह स्मोक करने बाहर गया तो भेड़िये ने उस पर हमला कर दिया… और उसकी बॉडी को खींच ले गए… । उसकी लाश को ज़मीन पर खींचने से बनने वाले निशान से फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने भेड़िये वाली कहानी को सच माना.. और क्योंकि उसकी लाश नहीं मिली तो कोई क्रिमिनल एफआईआर दर्ज नहीं हुई। कहते कहते प्रोफेसर तबस्सुम को कुछ याद आया और बोली…. सुनो ये सब किसी फ्यूचर डॉक्यूमेंट में आएगा तो नहीं ना…
    नैना ने ना में सर हिलाया…. फिर कहा….
  • पता है मैम, ये दुनिया उतनी बुरी है नहीं… जितनी हम इसे अपने लिए कंफर्टेबल बनाने की कोशिश कर देते हैं… कोई किसके साथ जिंदगी बिताना चाहता है ये फैसला उसका है, और सिर्फ उसी का होना चाहिए। कम से कम साइंट्स्ट्स से तो ये उम्मीद करते हैं कि वो इस बात को समझे… पर आप से मिलकर ये पता चलता है कि ये बेड़ियां कितनी गहरी हैं… और कितनी मज़बूत…

नैना ने कुछ और सवाल पूछे जिनके जवाब प्रोफेसर तबस्सुम ने दिये। तभी उनका फोन बजा… वो उठी और फोन पर बात करने लगीं…. लेकिन जब वो पलटी तो हैरान रह गयीं। नैना वहां नहीं थीं।

नैना… नैना… कहते हुए उन्होंने रूम का दरवाज़ा खोला… और वैक्यूम क्लीनिंग कर रहे एक होटल कर्मचारी से कहा, आपने किसी को यहां से निकलते हुए देखा… अभी
– नो मैम… यहां से तो कोई नहीं निकला… इज़ एवरीथिंग ओके…
– हम्म…

कहते हुए मायूस प्रोफेसर ने दरवाज़ा बंद किया और सोफे पर बैठ गयीं। वक्त गुज़र रहा था और उनके ज़हन में वो सवाल भी कि क्या वो नैना से फिर रभी मिल पाएंगी… क्या वो इस दुनिया को इस बात का भरोसा दिला पाएंगी… कि उनकी थेरी सही थी।
शाम हुई तो प्रोफेसर AWS के अवार्ड सेरेमनी में पहुंची। वो बड़ा सा नीली दीवारों वाला कॉनफ्रैंस हॉल था वो। जहां जगमगाती रोशनी थी। उसकी छत बहुत ऊपर थी। उस गोल हॉल में एक के पीछे एक डेस्क लगी थी जिनपर माइक थे। हर सीट पर एक नाम लिखा था। वहां फिज़िक्स की नई थ्योरी पर डिस्कशन होना था और पांच शॉर्टलिस्टेड साइंटिस्ट में से एक को इस बार का प्राइज़ मिलना था…. जो कि प्रोफेसर तबस्सुम जानती थीं कि उन्हें ही मिलना है। लोगों ने उन्हें बड़े अदब से रिसीव किया
“हैलो एवरीवन” उन्होंने कहा तो कुछ सूट बूट पहने हुए कुछ और बुज़ुर्ग उनके करीब आए और बहुत ही औपचारिक स्वागत करते हुए बोले… “वैलकम प्रोफेसर, सफर कैसा रहा”
– ऑल वेल…. हाउ आर यू… वेल आई रेड योर रिसेंट आर्टिकल … आई थिंक यू हैव आ प्वाइंट… बैठते हैं… लेट्स डिस्कस

प्रोफेसर साहिबा अपने फैलो जर्नलिस्ट्स के साथ बैठ गयीं.. यहां वहां की बातें करने लगी… अवार्ड शो शुरु हुआ और जब जीतने वाले का नाम अनाउंस हुआ तो प्रोफेसर साहिबा कुर्सी से थोड़ा सा उठी ही थीं… कि चौंक गयीं… वो नाम उनका नहीं था। उनके पैर अचानक कांपने लगे। कानों के पीछे उन्हें कुछ गर्म बूंदे ढलकती हुई महसूस हुई। वो हैरानी से इर्द-गिर्द देख रही थीं… अचानक ऑडिटोरियम की चमकती रौशनी उनकी आंखों में चुभने लगी। वो वापस कुर्सी पर तकरीबन गिरते हुए बैठीं कि तभी उनकी नज़र ऑडिटोरियम की एक सीट पर पड़ी… वहां नैना बैठी थी…. तो… यानि…. यानि वो सब… सब झूठ था?… प्रोफेसर तबस्सुम का सर चकराने लगा और बेहोश हो गयीं। “अरे वाट हैपंड.. पानी लाओ… प्रोफेसर साब.. हैलो… यू ओके?”  कुछ देर बाद उन्हें होश आया तो कॉनफ्रैंस हाल में लोग उन्हें घेरे हुए खड़े थे। भीड़ के बीच कुर्सी पर बेसुध पड़ी प्रोफेसर ने बंद होती आंखों को खोल कर देखा, सामने एक पुलिस ऑफिसर खड़ा था, उसके इर्द-गिर्द कुछ और लोग भी थे।
– “प्रोफेसर तबस्सुम , यू आर अंडर अरेस्ट फॉर दा मर्डर ऑफ योर ओन सन मुर्तज़ा ”

ऑडिटोरियम में शोर मच गया। कुछ देर बाद पुलिस प्रोफेसर तबस्सुम को हाथों में हथकड़ियां डालकर गाड़ी की तरफ ले जा रही थी। तभी उनका सामना नैना से हुआ। वो पुलिस की गाड़ी से टिकी हुई, हाथ बांधे उन्हें देख रही थी। दोनों करीब आए तो वो एक दूसरे के आमने–सामने ठहर गए। नैना बोली, “गुनाह अतीत के किसी भी तह में छुपा दीजिए… वो टाइम ट्रैवल करते हुए कभी न कभी आप तक ज़रूर आता है मैम”
तुम्हें… तुम्हें क्या मिला ये सब करके… तुम हो कौन”

इस बार उस नैना की नाली आंखों में बेहिसाब दर्द, मायूसी और गुस्सा था। वो दर्द में डूबी हुई आवाज़ के साथ बोला – “मेरा नाम नैना ही है, पर मैंने बताया था न कि मेरे भाई ने सुसाइड की थी… मेरे भाई का नाम सोहित था… वही सोहित जिसे मुर्तज़ा ने आपसे मिलवाया था.. और वही सोहित जिसने मुर्तज़ा की मौत के बाद सुसाइड कर ली…. ”

हथकड़ियों से बंधी प्रोफेसर साहिबा के होंठ कांपने लगे। उनकी आंखे फैल गयीं और माथे पर पसीना उभरने लगा।

कुछ देर बाद पुलिस कार प्रोफेसर तबस्सुम को लेकर धूल उड़ाती चली जा रही थी… और वहां से लाखों मील दूर एक सुनसान जंगल में पुरानी कब्र के बगल वाली उठी हुई ज़मीन पर एक फूल खिल गया था।

 

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